Tuesday, May 17, 2011

कुछ तो कमाना है

टुकड़ा ही सही कुछ तो कमाना है,

दवा जेब में है और काम पे जाना है।


अभी तो मन में है नीव उसकी,


अभी तो हकीकत में घर बनाना है.......



जगजीवन सोनू

Tuesday, May 10, 2011


की करिए हुन ओस मुसाफिर नू कोई ऐसी थां नहीं मिलदी,

तपदे सड़दे थल मिलदे ने सिर ते कोई शां नहीं मिलदी।


कहंदा सी के घर नु सुरग बना के ही हुन परतांगा मैं,

घर दा खुन्जा टोह- टोह थकेया घर विच किधरे माँ नहीं मिलदी......

जगजीवन सोनू




Wednesday, May 4, 2011

मेरे ख़त दा जवाब


मेरे ख़त दा जवाब ख़त लिखी,
कदी शिकवे शिकयत जरुरत लिखी,
कथा लिखी तू अपनी ते मेरी,
लफ्ज लाभी तू हवा च मोहब्बत लिखी.....
जगजीवन सोनू