Sunday, April 11, 2010

आइना होने की सजा...


आइना होने की यह सजा पाई है साहेब,
आज बिखरे हैं तो उनकी ही गली में....जगजीवन सोनू

Saturday, April 10, 2010

खुले दरवाजे...


खुले दरवाजे खुली सब खिडकिया रखना,
मोम के दिल में न बिजलियाँ रखना।

किसकी पर्खोगे इस शहर में मसुमिअत,
तोड़ दो पिंजरे, पालने में तितलियाँ रखना।

गभरा के धुन्दते हो किसे इस रह गुजर में,
रोक लेना आंसूं शुपा के बदलियाँ रखना।

जगजीवन सोनू

कम्पते होंठों पर...




कांपते होंठो पर उंगलिया रख देना,
मेरी किताबों में तितलियाँ रख देना।

मैं अगर रोक दूँ बेवजह सफ़र अपना,
या खुदा मेरे कदमो में बैसाखिया रख देना।

मैं इसी वेहम से लौट आऊंगा इक दिन,
तू किसी मोड़ पर सिसकियाँ रख देना।

जगजीवन सोनू

गीत गुगुनाकर देखो...


मैं तेरे पैरों में बांध दू लफ्जों की पाजेब,
तुम कोई गीत मेरे लिए गुनंगुनाकर देखो...

जलजला रखते..

दो कदम तो काफिला रखते,
साथ चलने का हौसला रखते,
सागर होने से पहले साहेब,
दिल के भीतर कोई जलजला रखते॥
जगजीवन सोनू

कांच का टुकड़ा

वेहम कोई भी हो पाले रखिये।
ज़िन्दगी आइना है, संभाले रखिये।

किसी को...


किसी को dhundane निकला हूँ शहर में,
अपना ही पता पूशने निकला हूँ शहर में।

पाल लिए वेहम अन्देहरे में रौशनी के,
अब देख लो जलने निकला हूँ शहर में,

सुना है वो मसल देते हैं पैरों से,
फूल बनकर खिलने निकला हूँ शहर में।


जगजीवन सोनू