Saturday, April 10, 2010

खुले दरवाजे...


खुले दरवाजे खुली सब खिडकिया रखना,
मोम के दिल में न बिजलियाँ रखना।

किसकी पर्खोगे इस शहर में मसुमिअत,
तोड़ दो पिंजरे, पालने में तितलियाँ रखना।

गभरा के धुन्दते हो किसे इस रह गुजर में,
रोक लेना आंसूं शुपा के बदलियाँ रखना।

जगजीवन सोनू

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