Saturday, April 10, 2010

कम्पते होंठों पर...




कांपते होंठो पर उंगलिया रख देना,
मेरी किताबों में तितलियाँ रख देना।

मैं अगर रोक दूँ बेवजह सफ़र अपना,
या खुदा मेरे कदमो में बैसाखिया रख देना।

मैं इसी वेहम से लौट आऊंगा इक दिन,
तू किसी मोड़ पर सिसकियाँ रख देना।

जगजीवन सोनू

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