Saturday, September 18, 2010

मुशिकल है के भीड़ में...

मुशिकल है के भीड़ में बुलाएगा कोई मुझे,
लोग खुद से ज्यादा नहीं जानते इस शहर में...जगजीवन सोनू

अपने अरमान दिल में शुपाकर रखिये

अपने अरमान दिल में शुपाकर रखिये,
भंवर में हो तो हाथ उठाकर रखिये।

बेगाने शहर में कहा जाकर शत ढून्दोगे,
इक घरोंदा कागज़ पर बनाकर रखिये।

आंधियां रोक नहीं सकते अगर हाथो से,
इन्ही हाथो से चिराग जलाकर रखिये।

इतना आसान नहीं सफ़र बर्फ पर करना,
आग पैरो में पल-पल लगाकर रखिये।
जगजीवन सोनू

सवाल करता है...

सवाल करता है, मगर वो खुद जवाब जैसा है,
शब्द मैं ढूँढता हूँ, मगर वो किताब जैसा है।

किसी फूल पर बैठी तितली की हँसी है,
बाग़ में महकी खुशबु बेहिसाब जैसा है।

ओस के उस पार गुजरती सूरज की किरण,
खुली आँख से देखा कोई खवाब जैसा है......
जगजीवन सोनू