सवाल करता है, मगर वो खुद जवाब जैसा है,
शब्द मैं ढूँढता हूँ, मगर वो किताब जैसा है।
किसी फूल पर बैठी तितली की हँसी है,
बाग़ में महकी खुशबु बेहिसाब जैसा है।
ओस के उस पार गुजरती सूरज की किरण,
खुली आँख से देखा कोई खवाब जैसा है......
जगजीवन सोनू
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