Sunday, October 3, 2010

मन की पग्दन्दिओन से..

चलो किसी किनारे को मिले,
यु कब तक
लहर की तरह
तड़पते रहोगे, भटकते रहोगे
इस और से दूसरी और
चलो किसी पत्थर से पुशें
कट कर घिस कर
किया सुकून मिला करता है,
पानी के बहाव में
कहा तक घिसटना जायज है
किया लहर भी कोई बात किया करती है।
चलो खुद से बात करें
भवर में हो तो
किसका हाथ पकडे
किया हाथ होते भी
डूब जाना यथार्थ का हिस्सा है
या यु कर लें
मन की पग्दन्दिओन से होते हुए
अपने ही भीतर कही दूर निकल जाएँ
और किनारे पर सहोद जाएँ
लोअत आने की उम्मीद...जगजीवन

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