कट जाये यह बोझ सा सफ़र तनहा,
किसी रोज मिलो मुझे किसी मोड़ पर तनहा,
जब से ले लिया है शेहर में मकान मैंने
गाँव में रह गया है एक घर तनहा.......जगजीवन सोनू
Tuesday, February 22, 2011
इसी डर से वो...
इसी डर से वो शख्स मुझ से जुदा नही होता,
वो जनता है खानाबदोश का पक्का पता नहीं होता,
रूठ जाते हैं लोग ता उम्र साथ नहीं देते,
एक खुदा है जो कभी किसी से खफा नहीं होता.......जगजीवन सोनू
वो जनता है खानाबदोश का पक्का पता नहीं होता,
रूठ जाते हैं लोग ता उम्र साथ नहीं देते,
एक खुदा है जो कभी किसी से खफा नहीं होता.......जगजीवन सोनू
किस मोड़ पर...
किस मोड़ पर आकर रुके रहे कदम,
पता ही न चला किओं बिक्के रहे कदम,
इक उम्र गुजर गई पत्रों के सजदे में,
सर तो सर था झुके रहे कदम......जगजीवन सोनू
पता ही न चला किओं बिक्के रहे कदम,
इक उम्र गुजर गई पत्रों के सजदे में,
सर तो सर था झुके रहे कदम......जगजीवन सोनू
भले ता उम्र...
भले ता उम्र मेरे पैरों में सफ़र रहेगा,
मैं अपनी हस्ती से गिर न जोऊ यही डर रहेगा,
वो रख देती है हरबार छोटी छोटी चीजें इसमें,
घरःमें माँ तो मेरे बैग में घरः रहेगा.......जगजीवन सोनू
मैं अपनी हस्ती से गिर न जोऊ यही डर रहेगा,
वो रख देती है हरबार छोटी छोटी चीजें इसमें,
घरःमें माँ तो मेरे बैग में घरः रहेगा.......जगजीवन सोनू
कभी जलते हुए....
कभी जलते हुए तो कभी संभलते हुए,
वो चिराग पहुँच ही गया हवा से बचते हुए,
मैं हर बार बेपर्द होकर मुखातिब हुआ उन्हें,
वो हर बार मिला है मुझे चेहरा बदलते हुए...
जगजीवन सोनू
वो चिराग पहुँच ही गया हवा से बचते हुए,
मैं हर बार बेपर्द होकर मुखातिब हुआ उन्हें,
वो हर बार मिला है मुझे चेहरा बदलते हुए...
जगजीवन सोनू
Wednesday, February 9, 2011
मैं नजर न आऊं
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