
तुम चले आते किसी रोज तो बुरा क्या होता,
सोचते तुम भी के मिलने में भला क्या होता।
तोहमते मुझ पे लगाकर य़ू मुह फेर लिया,
तुम तो अपने थे फिर तुम्क्से गिला क्या होता।
अब चले जाओ के जला बैठोगे हाथ अपने,
कुरेदते राख भी तो इसमें भला क्या होता।
य़ू तो तुमने भी पूछा नहीं हाले दिल कभी,
पूछ भी लेते सोचता हूँ के मिला क्या होता।
आह भी भरता हु तो माथे पे शिकन आती है,
अगर मैं कुछ कहता तो इसका सिला क्या होता..
जगजीवन
wah ji jeevan ji very nice
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