Bas k mujhe Shok se jeena nahi aaya...
उलझे रास्तो से तो कभी ज़माने के डर से,
वो शख्स बहुत कम निकलता है घर से।
इक उम्र उसे उठा नहीं पाया,
वो कुश यू गिर गया मेरी नजर से.....जगजीवन सोनू
मेरे होने का अगर उसे डर आता है,
नजाने फिर क्यूँ वो शक्श मेरे घर आता है।
वो चीख देगा उसकी ख़ामोशी टूट जाएगी,
कई दिन से वो उखड़ा उखड़ा सा नजर आता है...जगजीवन सोनू
रुकता नहीं कोई, संभलता नहीं कोई,
यहाँ धीरे धीरे चलता नहीं कोई।
जब से परदेस में जा बसी है वो तितली,
इस बाग़ में कोई फूल महकता नहीं कोई.....जगजीवन सोनू