Saturday, April 30, 2011




कुरेद लिया एक जख्म तन्हाई में,

लगाने कोन आयेगा मरहम तन्हाई में।


खुला है घर के आयेगा अभी कोई,

यह भी अछा है वहम तन्हाई में।

जगजीवन सोनू








Wednesday, April 13, 2011


वो भी मिलता है अब अजनबी की तरह।

इक उम्र जो साथ रहा ज़िन्दगी की तरह।

मैंने सब बुझा दिए चिराग उसने इतना कहा,

'मैं इक दिन लौट आऊंगा रौशनी की तरह'।

जगजीवन सोनू

Tuesday, April 12, 2011

उमीदो से परे...


उमीदों से परे निकले हो,

चलो कुछ तो खरे निकले हो।

ये अपना ही घर था दोस्त,

जिस घर से डरे डरे निकले हो...

Wednesday, April 6, 2011



उलझे रास्तो से तो कभी ज़माने के डर से,


वो शख्स बहुत कम निकलता है घर से।


इक उम्र उसे उठा नहीं पाया,


वो कुश यू गिर गया मेरी नजर से.....जगजीवन सोनू


Tuesday, April 5, 2011

भूल से जो अपना....


भूल से जो अपने नजर आते हैं, वही लोग कमीनगी पे उतर आते हैं। हमने भी छोड़ दिया घर का वास्ता देना, ऐसा करते हम ही बेघर नजर आते हैं....... जगजीवन सोनू

Sunday, April 3, 2011

मेरे होने का अगर...



मेरे होने का अगर उसे डर आता है,


नजाने फिर क्यूँ वो शक्श मेरे घर आता है।


वो चीख देगा उसकी ख़ामोशी टूट जाएगी,


कई दिन से वो उखड़ा उखड़ा सा नजर आता है...जगजीवन सोनू




रुकता नहीं कोई, संभलता नहीं कोई,


यहाँ धीरे धीरे चलता नहीं कोई।


जब से परदेस में जा बसी है वो तितली,


इस बाग़ में कोई फूल महकता नहीं कोई.....जगजीवन सोनू


Friday, April 1, 2011

फिर दुआओं की बरसात...



फिर दुआओं की बरसात हो जाती है,

फ़ोन पर जब माँ से बात हो जाती है।


चलो मुफलिसी ही सही कुछ भी कहो,

तू मुड़कर देख ले वही खैरात हो जाती है।


माँ रोज बैठ जाती है दर पे मैं भी क्या करूँ,

काम से आते आते रोज ही रात हो जाती है।

जगजीवन सोनू