Sunday, April 3, 2011



रुकता नहीं कोई, संभलता नहीं कोई,


यहाँ धीरे धीरे चलता नहीं कोई।


जब से परदेस में जा बसी है वो तितली,


इस बाग़ में कोई फूल महकता नहीं कोई.....जगजीवन सोनू


No comments:

Post a Comment