चलो किसी किनारे को मिले, यु कब तक लहर की तरह तड़पते रहोगे, भटकते रहोगे इस और से दूसरी और चलो किसी पत्थर से पुशें कट कर घिस कर किया सुकून मिला करता है, पानी के बहाव में कहा तक घिसटना जायज है किया लहर भी कोई बात किया करती है। चलो खुद से बात करें भवर में हो तो किसका हाथ पकडे किया हाथ होते भी डूब जाना यथार्थ का हिस्सा है या यु कर लें मन की पग्दन्दिओन से होते हुए अपने ही भीतर कही दूर निकल जाएँ और किनारे पर सहोद जाएँ लोअत आने की उम्मीद...जगजीवन
गुनगुनाते हुए जिसे सुब्ह से शाम हो जाये, कही ये नाम भी न बदनाम हो जाये, कुश लिखता हूँ तो उसे शब्द चुभते हैं, मैं कुश न लिखू तो इल्जाम हो जाये...जगजीवन सोनू
मैंने रखा है इस शहर से बस इतना सा ताल्लुक यह मुझे जेहर देता हैं मैं पीये जाता हूँ, इक उम्र से ख़तम हो गई हैं मेरी सांसे, समझ आती नहीं मैं कैसे जीए जाता हूँ...जगजीवन
की पता लगे पिया की चेहरिया दे आर पार, जद नजर जांदी नहीं है शेशिया दे आर पार, खुदा मेनू बी रोशन इस तरह कर दे किते, रौशनी हुन्दी जिवें हैं जुग्नुआन दे आर पार..जगजीवन सोनू