Saturday, December 24, 2011

किसे खवाब किसे याद रही होगी...


किसे खवाब किसे याद रही होगी नींद
के वो रात भर तेरी तस्वीर देखता रहा...
जगजीवन सोनू

बुझा हुआ या जलता हुआ रखना...


बुझा हुआ या जलता हुआ रखना,
खुली खिड़की दर पे दीया रखना।

इक उम्र के बाद उसी के शहर में हूँ,
ऐ! ज़िन्दगी मेरा पता रखना।

दुश्मनी में तुम बड़ा याद आये हो,
ऐ! दोस्त कुछ दिन यूँ ही फासला रखना।
जगजीवन सोनू

लौट के जब भी आओगे...


लौट कर जब भी आओगे,
मेरा दरवजा खुला पाओगे।

तेरे अन्दर तेरे बाहर हूँ मैं,
कहाँ जाओगे अगर जाओगे।

मैं जो भी हूँ तेरे सामने हूँ,
अब क्या मेरे पर्दो उठाओगे।
जगजीवन सोनू

Friday, November 18, 2011


वो कहता भी था तो उसे समझता नहीं था कोई,
लोग मोहब्बत कहते थे जिसे वो इबादत कहता था.....
जगजीवन सोनू

भूल जाओगे या भुला दोगे,
इस से ज्यादा क्या सजा दोगे।

मैं धूल हूँ मुझे कहा रखोगे,
दुपट्टा फेरोगे मुंह पे और हटा दोगे॥
जगजीवन सोनू

Friday, October 14, 2011


आंधियां लाख करें कोशिश बुझा दें भले इनको,
जो होते हैं चिराग वो देर तक बुझे नहीं रहते...
जगजीवन सोनू

खुद से बात नहीं करते...


किसे कहते फिरोगे शहर में सुनता नहीं कोई,
यहाँ कुछ लोग ऐसे हैं जो खुद से बात नहीं करते...

Thursday, October 13, 2011

जमीर


आज कल जमीर का ये हाल तो देखिये,
चार गिरती हैं बूँदें तो लोग फिसल जाते.....
जगजीवन सोनू

Saturday, September 24, 2011

मोहब्बत में सिरफिरा होना...


मोहब्बत में सिरफिरा होना बुरा नहीं होता,
जो अपना नहीं, वो कभी अपना नहीं होता।

यूँ तो यह हर घर की खबर रखते हैं,
ये वो हैं जिन्हें अपना पता नहीं होता।
जगजीवन सोनू

Thursday, September 22, 2011


सफ़र हो तो सफ़र का पता रखिये,
चिराग न हो तो चिरागों से वास्ता रखिये।
न जाने कब गिर जाये ये नफरतों की दीवार,
हाल पूछते रहिये बस इतना ही सिलसिला रखिये।

चुप रहता है, बोलता कुछ भी नहीं...


चुप रहता है, बोलता कुछ भी नहीं,
सिवा तेरे यूँ उसे सूझता कुछ भी नहीं।

तू मिले तो मैं भी अबकी बार चल पडूं,
बिना तेरे सफ़र और रास्ता कुछ भी नहीं।

Friday, September 9, 2011


आज नहीं तो कल बदलेगा,
मेरा
भी ये पल बदलेगा
उसके
पीछे कभी चलना,
बदलू
है वो दल बदलेगा
जगजीवन सोनू

Thursday, September 8, 2011


ओह खुद तपेया सभ नू ठारदा होयेया,
हाय! ओह हुने मोया तेरा नाम पुकारदा होयेया।
उम्मीद सी के असमान शुयेगा इक दिन,
बन्दा टह गिया महल उसारदा होयेया...
जगजीवन सोनू

उसदे पैरां नेड़े रखेया
रिश्ता मैं की फुल्लां वरगा
कलियाँ वर्गे पैरां नेड़े
पत्थर दा बुत्त बन बैठा हाँ...
जगजीवन sonu

इतना भी न समझिये खुद को...


इतना भी न समझिये खुद को,
बैठ जाइये थोडा जानिए खुद को,
कब तक औरों की खबर रखोगे,
किसी रोज तो पूछिए खुद को,
जगजीवन सोनू

Sunday, September 4, 2011

बहुत रोया है वो रात भर....


बहुत और बहुत रोया है वो रात भर,
वो कहते है के बरसात अछी हुई है,
उम्मीद थी के चले जाओगे किसी रोज,
जा चुके हो, चलो ये बात अछी हुई है...
जगजीवन सोनू


मोहब्बत में कभी सियासत नहीं करते...


मोहब्बत में कभी सियासत नहीं करते,
हम पथरों की इबादत नहीं करते।

जान लेते किसी रोज तबियत उनकी,
भूल कर भी कभी मोहब्बत नहीं करते।
जग्जीवन सोनू

Wednesday, August 31, 2011

जरुरत है किसे दे वास्ते ने ज़िन्दगी रिश्ते...


थला एह तपदियाँ विच बिरख, शामी रौशनी रिश्ते,
जरुरत है किसे दे वास्ते ने ज़िन्दगी रिश्ते।

कदे कीमत कदे एह कीमती हुँदै ने सभ नालो,
जिसम तीकर कदी मिलदे ने इथे कागज़ी रिश्ते।

अमीरी हीरेअं दे शीशेया विच भटक जांदी है,
गरीबी रोज मिलदी मूंह ते मलके सादगी रिश्ते।
जगजीवन सोनू

Friday, July 15, 2011

keemat


kujh rishte keemti nahi
keemat hunde ne
jeb tatolde ne kujh rishte
kadi vikan lai kahle
te kadi vechan lai....
jagjeevan sonu

Tuesday, May 17, 2011

कुछ तो कमाना है

टुकड़ा ही सही कुछ तो कमाना है,

दवा जेब में है और काम पे जाना है।


अभी तो मन में है नीव उसकी,


अभी तो हकीकत में घर बनाना है.......



जगजीवन सोनू

Tuesday, May 10, 2011


की करिए हुन ओस मुसाफिर नू कोई ऐसी थां नहीं मिलदी,

तपदे सड़दे थल मिलदे ने सिर ते कोई शां नहीं मिलदी।


कहंदा सी के घर नु सुरग बना के ही हुन परतांगा मैं,

घर दा खुन्जा टोह- टोह थकेया घर विच किधरे माँ नहीं मिलदी......

जगजीवन सोनू




Wednesday, May 4, 2011

मेरे ख़त दा जवाब


मेरे ख़त दा जवाब ख़त लिखी,
कदी शिकवे शिकयत जरुरत लिखी,
कथा लिखी तू अपनी ते मेरी,
लफ्ज लाभी तू हवा च मोहब्बत लिखी.....
जगजीवन सोनू

Saturday, April 30, 2011




कुरेद लिया एक जख्म तन्हाई में,

लगाने कोन आयेगा मरहम तन्हाई में।


खुला है घर के आयेगा अभी कोई,

यह भी अछा है वहम तन्हाई में।

जगजीवन सोनू








Wednesday, April 13, 2011


वो भी मिलता है अब अजनबी की तरह।

इक उम्र जो साथ रहा ज़िन्दगी की तरह।

मैंने सब बुझा दिए चिराग उसने इतना कहा,

'मैं इक दिन लौट आऊंगा रौशनी की तरह'।

जगजीवन सोनू

Tuesday, April 12, 2011

उमीदो से परे...


उमीदों से परे निकले हो,

चलो कुछ तो खरे निकले हो।

ये अपना ही घर था दोस्त,

जिस घर से डरे डरे निकले हो...

Wednesday, April 6, 2011



उलझे रास्तो से तो कभी ज़माने के डर से,


वो शख्स बहुत कम निकलता है घर से।


इक उम्र उसे उठा नहीं पाया,


वो कुश यू गिर गया मेरी नजर से.....जगजीवन सोनू


Tuesday, April 5, 2011

भूल से जो अपना....


भूल से जो अपने नजर आते हैं, वही लोग कमीनगी पे उतर आते हैं। हमने भी छोड़ दिया घर का वास्ता देना, ऐसा करते हम ही बेघर नजर आते हैं....... जगजीवन सोनू

Sunday, April 3, 2011

मेरे होने का अगर...



मेरे होने का अगर उसे डर आता है,


नजाने फिर क्यूँ वो शक्श मेरे घर आता है।


वो चीख देगा उसकी ख़ामोशी टूट जाएगी,


कई दिन से वो उखड़ा उखड़ा सा नजर आता है...जगजीवन सोनू




रुकता नहीं कोई, संभलता नहीं कोई,


यहाँ धीरे धीरे चलता नहीं कोई।


जब से परदेस में जा बसी है वो तितली,


इस बाग़ में कोई फूल महकता नहीं कोई.....जगजीवन सोनू


Friday, April 1, 2011

फिर दुआओं की बरसात...



फिर दुआओं की बरसात हो जाती है,

फ़ोन पर जब माँ से बात हो जाती है।


चलो मुफलिसी ही सही कुछ भी कहो,

तू मुड़कर देख ले वही खैरात हो जाती है।


माँ रोज बैठ जाती है दर पे मैं भी क्या करूँ,

काम से आते आते रोज ही रात हो जाती है।

जगजीवन सोनू

Saturday, March 26, 2011

कभी अपनी मुफलिसी पे रोता हूँ...


कभी अपनी मुफलिसी पे रोता हूँ,
कभी बीवी की सादगी पे रोता हूँ।

चिरागों को शूकर गुजर जाती है,
मैं हवा की दरिया दिली पे रोता हूँ।

यूँ भी रोता है भला कोई ऐसे,
बैठ कर जैसे मैं गली में रोता हूँ॥
जगजीवन

पता रहता है...


पता रहता है मुझे के तू कहा रहता है,
क्या करूँ मेरी मुठी में जहाँ रहता है।

निशान रह जाते हैं जैसे पत्तीओं के शाख पे,
तेरा एहसास कुछ यूँ दिल पे बना रहता है।

अपनी दीवारों से रहते हैं सब वाकिफ,
शहर में किसे किसका पता रहता है.....जगजीवन

वो टूट जाएगा, बिखर जाएगा,


वो टूट जाएगा, बिखर जाएगा,
ढून्ढ न पाओगे वो किधर जाएगा।

वो जनता है शहर में सिर्फ मेरा पता,
मेरे घर के सिवा किधर जाएगा।

इक मुद्दत के बाद वो संभला है,
नाम मत लेना वो डर जाएगा।

मेरा चेहरा तेरी आँखों से उतर जाएगा,
चेहरा यह भी इक दिन उतर जाएगा....
जगजीवन

वो टूट जाएगा, बिखर जाएगा,

Wednesday, March 2, 2011

तुम चले आते किसी रोज...


तुम चले आते किसी रोज तो बुरा क्या होता,
सोचते तुम भी के मिलने में भला क्या होता।

तोहमते मुझ पे लगाकर य़ू मुह फेर लिया,
तुम तो अपने थे फिर तुम्क्से गिला क्या होता।

अब चले जाओ के जला बैठोगे हाथ अपने,
कुरेदते राख भी तो इसमें भला क्या होता।

य़ू तो तुमने भी पूछा नहीं हाले दिल कभी,
पूछ भी लेते सोचता हूँ के मिला क्या होता।

आह भी भरता हु तो माथे पे शिकन आती है,
अगर मैं कुछ कहता तो इसका सिला क्या होता..
जगजीवन


Tuesday, March 1, 2011

आखरी चेहरा


(१)

तुम सच को चीख कर भी कहोगे

तो भी झूठ के पैर नहीं उग आएंगे

अपना चेहरा संभालकर रखना

शेहर में बहुत भीड़ है

कही तुम अपना वजूद न खो दो।

(2)

एक दो तीन चार और दस

सबके सब चेहरे गिन लो अशी तरह

ज़िन्दगी का सफर बहुत लम्बा है

तुम्हरे काम आएंगे

(३)

शेहर में भीड़ है सिर्फ पैरो की

पैरो का तुमसे कोई लेना देना नहीं

ये बात तुम कई बार कह चुके हो

चलो मंजिल पर बैसखिया राह देख रही हैं।

(४)

तुम्हे दर है

की कोई तुम्हारइ पीठ पर शूरा न घोप जाये

दोष तुम्हारा भी नहीं

पहले शहर होता था

अब भीड़ हो गई है

इसी भीड़ के किसी शोअर में

आखरी चेहरे की कथा लिखी जा रही है...

जगजीवन

Tuesday, February 22, 2011

कट जाये यह बोझ सा सफ़र तनहा...

कट जाये यह बोझ सा सफ़र तनहा,
किसी रोज मिलो मुझे किसी मोड़ पर तनहा,
जब से ले लिया है शेहर में मकान मैंने
गाँव में रह गया है एक घर तनहा.......जगजीवन सोनू

इसी डर से वो...

इसी डर से वो शख्स मुझ से जुदा नही होता,
वो जनता है खानाबदोश का पक्का पता नहीं होता,
रूठ जाते हैं लोग ता उम्र साथ नहीं देते,
एक खुदा है जो कभी किसी से खफा नहीं होता.......जगजीवन सोनू

किस मोड़ पर...

किस मोड़ पर आकर रुके रहे कदम,
पता ही न चला किओं बिक्के रहे कदम,
इक उम्र गुजर गई पत्रों के सजदे में,
सर तो सर था झुके रहे कदम......जगजीवन सोनू

भले ता उम्र...

भले ता उम्र मेरे पैरों में सफ़र रहेगा,
मैं अपनी हस्ती से गिर न जोऊ यही डर रहेगा,
वो रख देती है हरबार छोटी छोटी चीजें इसमें,
घरःमें माँ तो मेरे बैग में घरः रहेगा.......जगजीवन सोनू

कभी जलते हुए....

कभी जलते हुए तो कभी संभलते हुए,
वो चिराग पहुँच ही गया हवा से बचते हुए,
मैं हर बार बेपर्द होकर मुखातिब हुआ उन्हें,
वो हर बार मिला है मुझे चेहरा बदलते हुए...
जगजीवन सोनू

Wednesday, February 9, 2011

मैं नजर न आऊं


मैं नजर न आऊं तो पुकारकर देखना,
मुझे आईने में उतारकर देखना,
मैं सिन्दूर तेरा टीका सुर्ख लबों पर मिलूँगा,
किसी रोज मुझे भी सिंगार कर देखना...जगजीवन सोनू